January 19, 2009

yathaartha

टूट रहा है सब , 
सब कुछ है बिखर रहा 
जित्ना भी समेटूं, 
की नही यह सिमट रहा 
पूछता हूँ मैं उससे , 
बार बार हज़ार बार 
जो कुछ भी होना था, 
वोह क्यूँ इतनी जल्दी हो रहा 
 ख्वाब देखता रहता था शायद 
हसीं ख्वाब से वाकिफ भी कराया मुझे 
सुकून था कुछ ज़्यादा ही 
इसीलिए ख्वाब से झिंझोड़ रहा है मुझे 
खूबसूरत सोज़ , एक खूबसूरत चेहरा 
कालिख थी कुछ ज़्यादा, 
दाग हो गया गहरा 
 आसान नही होगा , 
यह तो मालूम था 
गिर गिर कर सीखेंगे, इसका भी इल्म था 
पैरों से कोई ज़मीन ही खीचेगा 
इतना भी तैयार नही था 
 कचोट रहा है मेरा दिल मुझे 
खाई है किसी और ने भी चोट मुझसे 
 खुदा के लिए ही खुदा का बन्दा 
खुदा लगा दे ख़ुद ही फंदा 
मिले खुदा गर मुझे कहीं पर 
कहूँगा उनसे यह जीवन है जर्जर
थका नही मैं अभी 
मगर गिला नही गर तू ले चले ऊपर